नन्ही सी परी बन आई होगी वो,
कभी अपने घर मे
कहा होगा उसे किसी ने लक्ष्मी,
तो बोल होगा सरस्वती का रूप।
अपनी मीठी मीठी बातों से,
दिल लुभाती होगी सबका,
माँ के आँचल से
खेल करती होगी वो
कभी छाव, कभी धूप।
करती होगी अपनी सहेलियों से,
वो भी तो बातें हज़ार
बांधती होगी भाई की कलाई पर
राखी, बड़े ही प्यार से, साल दर साल।
होंगे उसके भी कुछ सपने,
कुछ होगी ख्वाहिशे
आम इंसान की तरह ही तो
चल रही थी वो बस अपने रास्ते ....
फिर क्या था उसका कसूर,
कि आज होगयी
है वो इतनी मजबूर।
क्यों नहीं हुआ
उसकी चीखो का ज़रा भी असर,
आखिर माँ, बेटी और बहिन
तो होगी उनलोगों के भी घर।
बह रहे होंगे आसूं
उसकी माँ की आँखों से हज़ार,
क्या यही दिन देखने के लिए जी रही थी
वो कर रही होगी अब विचार।
क्या ला सकेंगे हम
इन चेहरों पर कभी मुस्कान
या अखबारों की खबरे पढ़ पढ़ कर ही
जिंदगी बन जायेगी, उनकी थकान।
क्या होती रहेंगी ऐसे ही
हर शहर में बेटियां
बेबस और लाचार,
और क्या हम कहते ही रहेंगे
की आज भी देश हुआ है शरमसार।
7 comments:
Lovely thoughts, Hema
ye itni dardnak aur bibhitsak ghatna hai ki iski chot shabdon mein bayan karni mushkil hai par tumara pryas sarahniye hai.. hum sab bethe aj iske baare mein soche to hi ruh kamp jati hai.tumne is baat ko badey marmik dhang se kaha hai.. sach hai usne bhi kabhi bade pyar se kisi bhai k haath par rakhi bandhi hogi...
Very touching.. to humans.. not beasts like Ram Singh and the gang..
Very touching.. as a mother I cant express enough anguish..
Very touching..
Beautiful thoughts, lovely lines.
Ab bhi to kuch sikh le ye sansar...lekin nahi ab bhi ho rahi hainn ladkiyan sarmshar..kya ishi ko kahte hain "ho raha bharat nirman"..
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